Thursday, 5 April 2018

जानिये 4 अप्रैल 1905 को काँगड़ा में हुए भूकंप बारे में

1905 भूकंप पर विशेष..
* इस दिन तहस-नहस हो गया था कांगड़ा
* शाहपुर से कांगड़ा तक नहीं बचा था कोई घर
* 19 हज़ार लोग, 38 हज़ार पशु बने थे काल का ग्रास
* रेहलू में दफन हो गए थे राजपरिवार के 29 सदस्य
यहाँ बात हो रही है वर्ष 1905 की,जब 4 अप्रैल की सुबह हिमाचल के कांगड़ा जिले में विनाशकारी भूकंप आया था। उस दिन भूकंप ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया था, हजारों की तादात में लोग भूकंप की भेंट चढ़ गए थे। भूवैज्ञानिकों के अनुसार कांगड़ा घाटी के भूकंप के 2 केंद्र थे।एक केंद्र कांगड़ा कुल्लू और दूसरा मसूरी-देहरादून इलाके में था। इस भूकंप से कई जगह भूस्खलन हुए, चट्टानें गिर गईं। धर्मशाला कस्बे की सारी की सारी इमारतें जमींदोज हो गई थीं। मैक्लोडगंज और कांगड़ा में ज्यादातर इमारतें ध्वस्त गईं थीं। ब्रिटिश गजेटियर के अनुसार कुल्लू-मनाली, शिमला, सिरमौर और देहरादून तक इस भूकंप ने अपनी विनाशलीला दिखाई थी।आज भी जब यह दिन आता है तो यहां के लोगों की आंखों से बस आंसू छलक जाते हैं,हर व्यक्ति सिरह से जाता है।साल 1905 में आए भूकंप के 2 झटकों ने ही पूरी घाटी को तहस-नहस कर दिया था।|
काँगड़ा

पालमपुर बाज़ार


सडक़ें, पुल, बिजली तार व्यवस्था आदि सब कुछ छिन्न-भिन्न हो गए थे। कांगड़ा का अजेय दुग्र तथा बजे्रश्वरी देवी मंदिर भी ध्वस्त हो गया था। जिलाभर में लगभग 19 हजार लोग 38 हजार पशु इस भूकंप की भेंट चढ़ गए थे। अकेले कांगड़ा नगर में मरने वाले लोगों का आंकड़ा 10257 था। कुल 13 लाख, 51 हजार 750 रुपए की राशि सहायता के रूप में पूरे देश से एकत्रित की गई थी।इस विनाशकारी भूकंप ने यहां पर सबकुछ तबाह कर दिया था। शाहपुर से कांगड़ा तक एक भी घर नहीं बचा था। भूकंप का झटका उत्तर से आया और दक्षिण की ओर बढ़ गया था। बचे हुए लोगों में पुलिस अधीक्षक मिस्टर होमन भी शामिल थे। उन्होंने विशेष वाहक के साथ एक संदेश नूरपुर भेजा और उसके बाद नगर में जाकर अपनी आंखों से ये प्रलय देखा। उस वक्त कांगड़ा जालंधर डिवीजन का भाग था, परंतु लाहौर से लाट साहब ने सीधी सहायता भी भेजी थी।कांगड़ा के भूतपूर्व जिलाधीश मिस्टर यंग हस्वैंड लाहौर में कमिश्नर पद पर थे, वह सहायता पार्टी के साथ आए। सहायता सामान और अधिकारियों की एक विशेष रेलगाड़ी पठानकोट भेजी गई। इसी बीच बचे हुए भारतीय और यूरोपीय लोगों ने संगठित होकर राहत कार्य किया। मलबे के नीचे दबे लोगों को जीवित बचाया गया।

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जवालाजी मंदिर

7 अप्रैल को पहुंची राहत सामग्री

7 अप्रैल को शाहपुर तक सामान पहुंच गया। पोइनियर की 2 कंपनियों के अलावा अंबाला से पोइनियर पर कंपनी के 200 व्यक्ति भी आ गए। साथ ही सेपर्स और माइनर्स की 2 कंपनियां भी यहां भेजी गईं। कांगड़ा में सामान चोरी न हो, इसका ध्यान रखते हुए घुड़सवार सेना भी भेजी गई। डाक व्यवसथा 8 अप्रैल तक सुधर सकी और सडक़ों का सुधार प्राथमिकता के आधार पर किया गया।13 अप्रैल तक टांगे धर्मशाला पहुंच गए परंतु कोतवाली बाजार और सिविल लाइंस की 2 मील की दूरी तय करने में टांगों को 2 दिन का वक्त लगा। जानकारी के मुताबिक कांगड़ा के आसपास की सडक़ों को गंभीर क्षति पहुंची थी और बनेर खड्ड के पुल के स्थान पर भी अस्थाई पुल बनाने में नौ-दिन का समय लगा था।कांगड़ा में आए भीषण भूकंप में जहां जिला में जानमाल सहित कई भवन क्षतिग्रस्त हुए थे, वहीं जिला के 2 भवन सुरक्षित रह गए थे। इन भवनों को यह भीषण भूकंप जरा भी नहीं हिला पाया था। इन भवनों में एक जिला कांगड़ा का अंग्रेजों द्वारा निर्मित ट्रेजरी कार्यालय और दूसरा तारा देवी का मंदिर था। ये दोनों इमारतें न तो गिरी और न ही इनमें कोई दरार तक आई।उक्त दोनों इमारतें आज भी उसी रूप में सुरक्षित खड़ी हैं।
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धर्मशाला
वर्ष 1905 में आए भूकंप में पांडवों के समय में निर्मित कांगड़ा किला से लेकर मैक्डलोडगंज का ऐतिहासिक चर्च तक इस त्रासदी की भेंट चढ़ गए थे। उत्तर भारत का प्रसिद्ध रॉक टैंपल भी इस भीषण भूकंप में नष्ट हो गया था। इस भीषण भूकंप के बाद अंग्रेजों ने जिला मुख्यालय कांगड़ा को बदलकर धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया था।इतिहासकारों की मानें तो जिला कांगड़ा का अंग्रेजों द्वारा निर्मित ट्रेजरी कार्यालय 1847 के बाद कांगड़ा में बनाया गया था। उस वक्त कांगड़ा में ही जिला मुख्यालय हुआ करता था। फिर अंग्रेजों ने मार्च 1855 में इसे कांगड़ा से धर्मशाला जिला मुख्यालय स्थापित कर दिया था। इतिहासकारों की मानें तो 1905 के दौरान कांगड़ा में आए भूकंप में कांगड़ा में ही स्थित तारा देवी मंदिर भी भूकंप से सुरक्षित रहा था लेकिन इस मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ था इस बात का कोई भी उल्लेख कहीं भी नहीं है। इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 1905 से पहले का निर्मित है।कांगड़ा को पुन: पटरी पर लाने के लिए सालों लग गए थे। 
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